0 विनोद कुशवाहापिछले रविवार और इस रविवार के बीच 29 अप्रैल को राजा रवि वर्मा का जन्म दिन बीत गया। देश के ख्याति प्राप्त चित्रकार राजा रवि वर्मा की किसी ने सुध नहीं ली। वे राजा रवि वर्मा जिन्होंने हिन्दू धर्म , दर्शन , ध्यान , मिथक सबको अपने चित्रों के माध्यम से एक नई दृष्टि दी। वे पहले ऐसे चित्रकार थे जो हमारे देवी देवताओं को इंसानी चेहरा देने में कामयाब हुए। चाहे राम सीता , राधा कृष्ण हों या फिर माँ दुर्गा , लक्ष्मी , सरस्वती ही क्यों न हों सबको उन्होंने मानवीय शक्ल सूरत दी। राजा रवि वर्मा का महत्व इस बात से ही समझा जा सकता है कि 2014 में उन पर एक फिल्म का निर्माण भी किया गया। रंगरसिया । इसके निर्देशक केतन मेहता थे। फिल्म में राजा रवि वर्मा का किरदार रणदीप हुड्डा ने निभाया था और सुगंधा का चरित्र फिल्म अभिनेत्री नंदना सेन ने अदा किया था। कहा जाता है कि सुगंधा राजा रवि वर्मा की केवल मॉडल भर नहीं थी बल्कि उससे उनके प्रेम संबंध भी रहे।
आज ” अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस ” भी है । मैं इतना बड़ा पत्रकार भी नहीं जो इस दुरूह, दुष्कर, मुश्किल और कठिन विषय पर अपनी कलम चला सकूं। लिख सकता हूं पर बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। कुछ प्रश्न जरूर हवा में तैरेंगे। जैसे – क्या प्रेस स्वतंत्र है ? क्या प्रेस के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी है ? क्या प्रेस सही मायने में जनता की आवाज है? क्या लोकतंत्र का ये चौथा स्तम्भ अपनी जगह मजबूती से स्थिर खड़ा हुआ है?
चलिये छोड़िये । हम लौटते हैं इन यक्ष प्रश्नों से बचते हुए वापस अपनी रंग बिरंगी दुनिया में । यानि ‘ बहुरंग ‘ में । आज जिक्र मोमिन का। मोमिन। अठाहरवीं सदी के मशहूर शाइर मोमिन। पहले मुलाहिजा फरमाईये उनकी एक मशहूर गजल :-
असर उस को जरा नहीं होता
रंज राहत-फ़जा नहीं होता ,
बेवफ़ा कहने की शिक़ायत है
तो भी वादा – वफ़ा नहीं होता ,
तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता ,
उस ने क्या जाने क्या किया ले कर
दिल किसी काम का नहीं होता ,
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता ,
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता ।
◆ राहत-फ़ज़ा – सुकून बढ़ाने वाला
◆ चारा-ए-दिल – दिल का इलाज
◆ सब्र – संयम
” अहा ! ज़िंदगी ” हिंदुस्तान की सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिका है। सम्माननीय रचना समंदर के संपादन ने इस बहुचर्चित पत्रिका को नए कलेवर में प्रस्तुत कर ‘ अहा ! ज़िंदगी ‘ को नए आयाम दिए हैं । डॉ सुरेश मिश्र इसमें नियमित रूप से लिख रहे हैं जिन्होंने होशंगाबाद के एनएमवी कॉलेज में मुझे इतिहास पढ़ाया था। हालांकि व्यक्ति जैसा लिखता है वैसा उसको होना भी चाहिए। टोटल लॉक डाउन के कारण ” अहा ! ज़िंदगी ” का माह अप्रैल का अंक पाठकों तक नहीं पहुंचा। ज़िंदगी में ‘ज़िंदगी’ का अभाव बहुत खल रहा है। खैर । यहां बात फरवरी के अंक की जिसमें से उपरोक्त ग़ज़ल साभार ली गई है ।
” अहा ! ज़िंदगी ” के अनुसार मुहम्मद मोमिन ख़ां ( 1800 – 51 ) का खानदानी पेशा हकीमी था पर शायर होने के साथ – साथ वे तारीख़ बताने की कला में भी पारंगत थे। उन्होंने मेरी तरह अपनी मृत्यु की तारीख भी बता दी थी। जैसे मेरी मृत्यु 4 मार्च 2023 को एक दुर्घटना में होगी। हत्या भी हो सकती है। संगीत और शतरंज दोनों ही मोमिन को बेहद पसन्द थे। मेरी भी रुचि इनमें है। बस मैंने ज्यादा गज़लें नहीं लिखीं। चूंकि मुझे उर्दू, अरबी, फारसी नहीं आती इसलिये जां निसार अख़्तर साहब मुझे ग़ज़ल लिखने के लिये मना कर गए थे। हुआ यूं कि वे नौशाद साहब के साथ इटारसी एक मुशायरे में आये थे। मुशायरे के पहले मैं जब उनसे मिला तो दोनों साहिबान ने मेरा हौंसला बढ़ाते हुए जबर्दस्ती मुझसे मेरी एक ग़ज़ल सुनी । ग़ज़ल के बोल थे – ‘ रेत पे पांव फिसलते हैं पानी की तरह ‘। जनाब अख़्तर साहब ने ये कहकर मुझे बेहद प्रेम से डपट दिया कि – ” उर्दू नहीं आती है तो गज़ल लिखने का कोई मतलब नहीं “। नौशाद साहब कुछ नहीं बोले। बस धीरे से इतना ही कहा कि – ‘ जब कभी बम्बई आओ तो मेरे से जरूर मिलना ‘। अफ़सोस कि अब दोनों नहीं हैं। मेरे तीसरे श्रोता थे पाकीजा, रजिया सुल्तान जैसी क्लासिक फिल्मों के गीतकार कैफ भोपाली। मजे की बात ये है कि कैफ साहब को मेरी ग़ज़ल बहुत पसंद आई। यह बात अलग है कि उस समय वे सुरूर में थे। मगर इतने भी सुरूर में नहीं थे कि अच्छे और बुरे में भेद न कर पाते। उन्होंने हमारे संयुक्त काव्य संग्रह ” उमड़ते मेघ पीड़ाओं के ” का विमोचन किया था। उनकी बेटी डॉ परवीन कैफ को तो हमने ‘ मानसरोवर साहित्य समिति ‘ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आमंत्रित भी किया था जिसके मुख्य अतिथि तत्कालीन सरकार मुख्य नगर पालिका अधिकारी स्व श्री सुरेश दुबे थे। बावजूद इस सबके अभी कुछ दिन पहले इटारसी में ही किसी ने मुझसे कहा कि – ” आपको उर्दू के मायने भी पता हैं ? ” इस मैसेज को मैं जब तक समझ पाता विनोद कुशवाहा ब्लॉक कर दिए गए पर मैंने उन्हें ब्लॉक नहीं किया क्योंकि इस सब के बाद भी मैं उनका बेहद सम्मान करता हूं। खैर । पिछले दिनों ‘ मंजुल पब्लिशिंग हाउस ‘ ने ओमप्रकाश शर्मा द्वारा संकलित मोमिन की ग़ज़लें किताब के रुप में प्रकाशित की हैं। इसकी कीमत 146 रुपये रखी गई है। सम्भव है कि मोमिन पर केंद्रित ये किताब ” टोटल लॉक डाउन ” हटने के बाद इटारसी के प्लेटफॉर्म नंबर 2 के ‘ सर्वोदय साहित्य भंडार ‘ पर उपलब्ध हो जाये। उक्त ग़ज़ल भी उसी संग्रह से ली गई है। ” काबिल-ए-तारीफ ” बात तो ये है कि इसकी समीक्षा भी ‘ अहा ! ज़िंदगी ‘ में की गई है। इस स्तम्भ के माध्यम से रचना जी का आभार कि उन्होंने पाठकों को उनके पसंदीदा शाइर मोमिन से रूबरू कराया। अंत भी मोमिन के उस शेर से जिसे सुनकर मिर्जा गालिब ने कहा था ” इस पर मेरा पूरा दीवान क़ुरबान ” –
‘ तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता ‘
अरे हां चलते – चलते एक बात और । 1966 में रिलीज फिल्म ” लव इन टोकियो ” ( निर्माता निर्देशक प्रमोद चक्रवर्ती ) में एक गीत हसरत जयपुरी ने लिखा था। जिसके मुखड़े में उन्होंने मोमिन की इस ग़ज़ल का एक शेर अपने शब्दों में बहुत ही खूबसूरती से जोड़ा था –
‘ ओ मेरे शाहे खुबा
ओ मेरे जान- ए – जनाना
तुम मेरे पास होते हो
कोई दूसरा नहीं होता . ‘
हसरत साहब के इस गीत को जनाब मोहम्मद रफी साहब ने गाया था और सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भी इसे अपना स्वर दिया था । मेरे इस पसंदीदा गीत को कर्णप्रिय संगीत दिया था शंकर जयकिशन ने। ये गीत अक्सर मैं सुनता हूं और किसी को याद भी करता हूं। खैर । जाने दीजि । अंत में ” नर्मदांचल परिवार ” की ओर से सुप्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा को विनम्र श्रद्धांजलि। साथ ही पत्रकार साथियों को ‘ अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस ‘ पर शुभकामनाएं। प्रेस की गरिमा बनी रहे। कलम निष्पक्ष चलती रहे। तभी ” प्रेस की स्वतंत्रता ” भी कायम रहेगी । … लेकिन हम मोमिन को भी न भूलें । न ही भूलें हसरत जयपुरी के इस गीत को – ‘ तुम मेरे साथ होते हो , कोई दूसरा नहीं होता । ‘ बस।
लेखक मूलतः कहानीकार है परन्तु विभिन्न विधाओं में भी दखल है। आपके 4 प्रकाशित काव्य संग्रह, अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं और कविताओं का प्रकाशन, भोपाल और बिलासपुर विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहत कथाकोश, कई पत्रिकाओं में वैचारिक प्रतिक्रियाओं का प्रकाशन, सोवियत रूस से कविताओं का प्रकाशन, आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण, कविताओं पर प्रदर्शनी हुई है। इसके अलावा आपने कृषि, पंचायत, समाज कल्याण, महिला बाल विकास, आरजीएम, शिक्षा विभाग में विभिन्न कार्यपालिका, प्रशासनिक, अकादमिक पदों पर सफलता पूर्वक कार्य किया है।
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Gana sunata lekin lekhak ka naam pata nahin tha sach mein bahut acche lekhak hey vah