सोमवार, जून 17, 2024

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दीपावली विशेष : जग मग ज्योति महापर्व 

* राजधानी से पंकज पटेरिया :
ज्योति महापर्व दीप मालिका मनाने की आदिकालीन समृद्ध परंपरा है। पौराणिक काल से दीपावली मनाने की यह परंपरा चली आ रही है। माता लक्ष्मी की पूजा उपासना का यह पर्व छोटे-बड़े निर्धन धनवान सभी लोग अपने सामर्थ्य और श्रद्धा भक्ति से मनाते हैं। अब तो संसार भर के विभिन्न देशों में अपनी परंपरा के अनुसार दीपावली मनाई जाती है। श्री सूक्त से महालक्ष्मी जी की पूजन करने का विशेष महत्व है। माता जी को श्री भी कहा जाता है जिसका अर्थ है शुभ सुंदर कांति। मां लक्ष्मी जी सर्व सुख वैभव प्रदान करती है। लक्ष्मी जी की एक सुप्रसिद्ध आरती में भी यह उल्लेख है खान पान का वैभव, सब तुमसे आता, जय लक्ष्मी माता। स्पष्ट है की सर्व सुख समृद्धि मां लक्ष्मी की से ही प्राप्त होती है।
श्री लक्ष्मी जी को दुर्गा जी के अवतारों में एक अवतार के रूप में माना गया है। लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री हैं और दीप पर्व धन का पर्व है। रिद्धि-सिद्धि समृद्धि की दाता महालक्ष्मी के शुभ आगमन से अमीर छोटे बड़े सभी लोग बड़े हर्षोल्लास से ओत प्रोत रहते हैं। लक्ष्मीजी के स्वागत पलक पावड़े बिछाए घरों की साफ-सफाई रंग रंग रोगन कर आकर्षक तरीके से साज सज्जा करते करते पुलकित होते रहते। निर्धन वर्ग भी मिट्टी गारो के अपने कच्चे मकानों को लिपाई पुताई कर सुंदर रूप देते हैं तो पक्के मकान भी पैंट्स आदि नए रूप में मुस्कुरा उठते हैं।आंगन में रंगोली मांडवेकार ने की भी गौरवमई परंपरा है। इस सबके पीछे भावना लक्ष्मी जी के स्वागत की ही है।
कहा भी गया है कि लक्ष्मी का वास स्वच्छ पवित्र स्थान पर ही होता है। लोक जीवन में विष्णु प्रिया लक्ष्मी की कई रूपों में अर्चना की जाती है इनके प्रतीक भी हैं। माता लक्ष्मी के प्राकट्य की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। इनमें प्रमुख यह है पुरातन काल में सुर और असुर गण ने मिलकर जब सागर मंथन किया तो वह रत्न रूप में 14 रत्नों में एक रूप में सागर से प्रकट हुई थी। इसलिए समुद्र को श्री लक्ष्मी जी का पिता और पृथ्वी को उनका मायका कहा गया है। देवी लक्ष्मी के रूप वैभव को देखकर असुर गण उन्हें प्राप्त करना चाहते थे। पर माता लक्ष्मी ने कौस्तुभमणिधारी भगवान श्री विष्णु जी को अपना स्वामी मान वरण किया। सदाचरण और परमार्थ करते लक्ष्मी को प्राप्त करना चाहिए तब वह कृपा आशीष सदा बनाए रखती है। यह कहना उचित होगा सत्कर्म और परमार्थ सुखी जीवन का आधार है और इसे व्रत की तरह मानकर चलने से लक्ष्मी माता स्थाई रूप से वास करती हैं। हमे इसी पावन भाव और संकल्प से माता लक्ष्मी जी की पूजन कर दीप मालिका का जगमग पर्व मनाना चाहिए। लोकमंगल की भावना से हमारा भी मंगल स्वत ही होता है।
आलोक के महापर्व पर सुधी पाठकों और सभी आत्मीय जनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
देहरी देहरी रोशनी के फूल खिले। घर घर से तिमिर ढले।
हर हर चेहरा उजास नहाए। दीपाली ऐसे मनाएं।
ऐसी आकांक्षा के साथ नर्मदे हर।

PATERIYA JI
पंकज पटेरिया
पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
भोपाल

Rashtra Bharti

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