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गजल : आँख नम है मेरी ज़माने से

गजल

आँख नम है मेरी ज़माने से, दर्द बढ़ता गया दबाने से।

काम आते नहीं कभी आँसू, ग़म मिटेगा तो मुस्कुराने से।

मत जलो कामयाबी से मेरी, कुछ न पाओगे दिल जलाने से

शाम होने लगी ढ़ला सूरज, घर भी आओ किसी बहाने से।

बिन तुम्हारे अधीर हैं नैना, याद आते वो दिन सुहाने से।

बाग से कह रही थी कल तितली, फूल खिलते हमारे आने से।

लाख चाहा उन्हें भुला दूँ मैं, याद आये बहुत भुलाने से।

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महेश कुमार सोनी (माखन नगर)

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